सारे युद्ध कहां लिखे गए अभी ?
राख के ढेर पर बेशक
नर्म घास उग आई हो ,
थोड़ा गहरा सा खोद के देखें
हड्डियां और बारूद सड़ा नहीं होगा।
सब महामारियाँ खत्म कहां हुई अभी ?
बाहर से हम बीमार नहीं दिखते बस।
किसी अंधेरे मैले कोने में
बहुत से अनाम विषाणु
अथक प्रतिरूप बना रहे होंगे।
चीखें गूंज रही थी
स्याह घने कोहरे के आर पार
अभी बेशक हल्की रोशनी हुई है
धुंधला सा दिखने लगा है आसमान।
सिर्फ वक्त का फर्क है शायद
या कुछ स्याहियां सूखने का इंतजार
शब्दों के बीचोंबीच भी बहुत कुछ लिखा गया है
जो अभी पढ़ा जाना बाकी है ।
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