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भीडतंत्र से लोकतंत्र

पिछले दिनों जो घटना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण लगी, वह थी बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम। नीतीश कुमार फिर से जीत गये। वह भी अस्सी प्रतिशत के भारी बहुमत के साथ । यानी जनता ने लगभग एकतरफा मतदान किया..वह भी सीधे सीधे एक ही एजेंड को लेकर..विकास । जनता ने सरकार के किए गये कार्यो को सराहा और अगले पांच बर्षो के लिए जनादेश दिया। परिणाम सुखद था । पर आश्चर्य भी हुआ। बिहार जैसे राज्य में विकास पर मतदान ? तो जातिगत समीकरणों का क्या हुआ ?दबंगों और पिछडों ने पिछले सारे मुद्दे भुला दिए क्या ? सभी को एक ही विकास पुरुष नज़र आ रहा है। बिहार अपने अतीत की कालिख को झाडता हुआ उठता प्रतीत हो रहा है। आगे बढना चाहता है। भारत के लोकतंत्र पर कुछ प्रश्न यहां खडे होते हैं। साथ ही साथ कुछ नये उत्तर भी मिल जाते हैं। कुछ प्रश्न तब भी खडे हुए थे जब इस विशाल बदहाल देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था पहली बार लागू हुई थी। बहुत कम लोगों को इसकी सफलता पर यकीन था। जानकारों का मानना था कि ये व्यवस्था भारत जैसे देश के लिए उचित नहीं है। यदि ये लागू भी होती है तो इसका दायरा बहुत सीमित होना चा...

मेरे गाँव की कहानियां

छोटी सी बात थी। मैल ढोते हुए घोड़े ने अनजाने में बिजली के पोल को धक्का दे दिया था। और पोल भी ऐसा, की इस झटके से पूरी तरह हिल गया। तारें आपस में लिपट गयी । और फ्यूज़ उड़ गया। शाम होने को थी। हल्का हल्का अँधेरा भी छा रहा था। मेरे शांत गाँव में अचानक कुछ गलत हो गया था। शाम होते होते आजकल सड़कें सुनसान हो जाती हैं। कुछ पर आई पी एल का भूत सवार है तो कोई ताश छोलो का शौक़ीन । सड़क पर बतियाने का वक़्त आजकल किसी के पास नहीं है। पर आज गलत वक़्त पर बिजली गुल हो गयी थी। धीरे धीरे गाँव के लोग बाहर निकलने लगे। सड़क पर गहमा गहमी बढ़ गयी । लोग नाराज़ लग रहे थे। ऐसा लग रहा था कि बड़े दिनों बाद किसी मुद्दे पर लोग एक राय हो रहे थे। बेवक्त बिजली का जाना, अधूरे मैच का जाने क्या हुआ होगा, आज लोग एक दुसरे से बातें कर रहे थे। फिर कोई खबर लाया कि गाँव के दुसरे हिस्से में पोल के साथ हादसा हो गया है।झटपट लाइन मैन को फ़ोन मिलाया गया। ...

रोहतांग खुल गया..!!

अभी जाग जाओ रोहतांग छोड़ दो आलस अपनी सफ़ेद चादर से निकलो बहुत हुई, लम्बी शीत निद्रा अगले चंद दिनों में न जाने कितने लोग चढ़ आयेंगे तेरी चोटियों तक तेरी सफ़ेद चादर को एक अजूबे की तरह ताकते कुचल डालेंगे फिर उसी को खुशी और उल्लास में समय से पहले छीन लेंगे तुमसे मैली कर देंगे अपने जूतों में चिपकी मैदानों कि धूल से डरा के रख देंगे अपने शोर और हजारों होर्स पॉवर से साथ ले आयेंगे अपनी मुश्किलें गंदगी , दुःख, बैचैनी और जाने क्या क्या रोंदते हुए गुज़र जायेंगे न जाने कहाँ कहाँ अभी वक्त है उठ बैठो मना कर दो किसी की सैरगाह बनने से इतने जोर से दहाडो कि हिमयुग फिर से लौट आए बस... 'उस' आदमी को मत रोकना जो सदियों से तुमसे होता हुआ अपने घर जाता है