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रोहतांग खुल गया..!!

अभी जाग जाओ

रोहतांग

छोड़ दो आलस

अपनी सफ़ेद चादर से निकलो

बहुत हुई,

लम्बी शीत निद्रा

अगले चंद दिनों में

न जाने कितने लोग

चढ़ आयेंगे तेरी चोटियों तक

तेरी सफ़ेद चादर को

एक अजूबे की तरह ताकते

कुचल डालेंगे

फिर उसी को

खुशी और उल्लास में

समय से पहले

छीन लेंगे

तुमसे

मैली कर देंगे

अपने जूतों में चिपकी

मैदानों कि धूल से

डरा के रख देंगे

अपने शोर

और हजारों होर्स पॉवर से

साथ ले आयेंगे

अपनी मुश्किलें

गंदगी , दुःख, बैचैनी और जाने क्या क्या

रोंदते हुए गुज़र जायेंगे

न जाने कहाँ कहाँ

अभी वक्त है

उठ बैठो

मना कर दो

किसी की सैरगाह बनने से

इतने जोर से दहाडो

कि हिमयुग फिर से लौट आए

बस...

'उस' आदमी को

मत रोकना

जो सदियों से

तुमसे होता हुआ

अपने घर जाता है

Comments

  1. wow jiju...
    u r too grt yaar!!!
    u've started inspiring me now..

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  2. Who can better know about "ROHTANG"than U being local...and a sensible cry for its own cause...good job !Carry on !!

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  3. सुन्दर कविता, रिंकू... लगता है इतने दिन मैंने आस पास एक ईमान दार कवि को मिस किया....यह तो तुम पहाड़ पत्रिका को भेजो. अभी तुरत.शेखर पाठक पसन्द करेगे.....
    एड्रेस्स:
    सम्पादक पहाड़
    परिक्रमा ,तल्ला डाँडा , तल्ली ताल, नैनीताल -उत्तराखण्ड. पिन : 263002

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  4. Sandeep Shashni
    bahut achhe... shandar likha aapne....

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  5. R.k. Telangba
    विनोद जी ने बहुत अच्छी कविता लिखी है..
    १५ अप्रेल को ही रोहतांग दर्रे पर वाहनों का आर पार होना एक सुखद एहसास तो है लेकिन इस के पीछे ग्लोबल वार्मिंग नामक देत्य का योगदान है. पहाड़ों पर बर्फबारी कम होने से ग्लेशियरो के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. ग्रीन हॉउस गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन के कारण पृथ्वी के वातावरण का तापमान बढ़ता चला जा रहा है... See More. उदाहरण के तौर पर रोहतांग को ही लें. आज से १५ -२० साल पहले रोहतांग दर्रे पर वाहनों का आवागमन जून के महीने में जा कर हो पाता था. रोहतांग टॉप पर उस वक्त ३० से ४० फीट बर्फ की मोटी चादर पाई जाती थी लेकिन आज की तारीख में जून का महीना आते आते रोहतांग पर बर्फ लगभग पूरी तरह ही पिघल जाता है. ... हालत यही रहें तो आने वाले कुछ वषों में पहाड़ों पर जमे हुए ग्लेशियर पूरी तरह ख़त्म हो जायेंगे और कई संकट उत्पन्न हो जायेंगे. !!

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  6. Shamshergalva Galva
    vinod bhai kya khoob bayaan kiya hai ji apne FEELLINGs ko kavita ke madhayem se..

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  7. Ashok Raika
    kya baat hai vinod ji,kis khubsoorti se akhsharion mein me pirooya hai apne zazbation ko.....simply great

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  8. Virender Suri
    wah wah wah..........

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  9. Sham Lal
    itni jaldi wah wah mat karo ... woh dekho dobaara nidra mai chala gaya....

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  10. Reeta Katoch
    GOOD ONE :)

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  11. आप सब का शुक्रिया...ये मुझे महसूस होता है जब मैं टूरिस्ट सीज़न में रोहतांग पार करता हूं...

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  12. vinod ji
    aap ki kavita sirf ek kavita hi nahi yah ek aggaz bhi hai us pradushan ki khilaaf jo ek par-yatan sthal per gair zimmebaar par-yatak ki gair zimmedaraan mastiyon ke natijan hota hai.
    yeh wastav main ek gambhir samasya hai. ham sabhi ko or sarkar ko bhi is samasya ke samadhan ke liye kuch karna hoga. koi aisa form bane jis main log badh chadh ke hissa lain or apni dev bhoomi ko bahri paryatakon ke dwara failaye jaane wale sankraman se bachan saken. kavita ke liye saadhubad. bhavishya main aap ki or kavitayen padhne ko milengi is umeed main rahunga.
    dhanyabaad

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  13. The message has been conveyed in such a simple way....Great work,Vonodji....

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  14. vinod ji,unfiendly travellers maligned the Ruh of rohtang this thought in poetic jewell is marvellous,ice work vinod ji aap accha likte hai

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