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Showing posts from December, 2010

भीडतंत्र से लोकतंत्र

पिछले दिनों जो घटना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण लगी, वह थी बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम। नीतीश कुमार फिर से जीत गये। वह भी अस्सी प्रतिशत के भारी बहुमत के साथ । यानी जनता ने लगभग एकतरफा मतदान किया..वह भी सीधे सीधे एक ही एजेंड को लेकर..विकास । जनता ने सरकार के किए गये कार्यो को सराहा और अगले पांच बर्षो के लिए जनादेश दिया। परिणाम सुखद था । पर आश्चर्य भी हुआ। बिहार जैसे राज्य में विकास पर मतदान ? तो जातिगत समीकरणों का क्या हुआ ?दबंगों और पिछडों ने पिछले सारे मुद्दे भुला दिए क्या ? सभी को एक ही विकास पुरुष नज़र आ रहा है। बिहार अपने अतीत की कालिख को झाडता हुआ उठता प्रतीत हो रहा है। आगे बढना चाहता है। भारत के लोकतंत्र पर कुछ प्रश्न यहां खडे होते हैं। साथ ही साथ कुछ नये उत्तर भी मिल जाते हैं। कुछ प्रश्न तब भी खडे हुए थे जब इस विशाल बदहाल देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था पहली बार लागू हुई थी। बहुत कम लोगों को इसकी सफलता पर यकीन था। जानकारों का मानना था कि ये व्यवस्था भारत जैसे देश के लिए उचित नहीं है। यदि ये लागू भी होती है तो इसका दायरा बहुत सीमित होना चा